Sunday, July 1, 2012

सदियों के संताप और अंधेरे के खिलाफ़


सदियों के संताप और अंधेरे के खिलाफ़

                   जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ( 28 और 29 जून ) का आयोजन किया गया ।  सम्मेलन का विषय था - सामाजिक - सांस्कृतिक आंदोलन और अस्मितावादी साहित्य ।  यह आयोजन दलित अस्मिता और सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट के संयुक्त तत्त्वाधान में संपन्न हुआ । सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि केन्द्रीय मंत्री  (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय) श्री मुकुल वासनिक ने किया।इस अवसर पर बोलते हुए उन्होने कहा कि उपेक्षित वर्ग को न्याय और सांवैधानिक अधिकारो के लिये सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन आज भी अनिवार्य है. दलित साहित्य को आग की संज्ञा देते हुये उन्होने कहा कि यह आग रोशनी बनकर समाज से विषमता और भेदभाव के अंधकार को दूर भगाएगी.इस सेंटर की परिकल्पना और उद्धेश्यो के बारे में बताते हुये सेंटर की अध्यक्ष प्रो.विमल थोरात ने कहा कि यह संस्था दलित साहित्य और कला के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की लडाई को तेज करेगी. इस सत्र के विशेष अतिथि प्रो. सुखदेव थोरात यह सेंटर दलित आंदोलन की जमीन को मजबूत करने की दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगा.इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा पंद्रह विशिष्ट रचनाकारों - चिंतकों को ‘’दलित अस्मिता सम्मान 2012’’ से सम्मानित किया गया ।इस सत्र का संचालन सूरज बडत्या ने किया.     
 देश - विदेश से आये प्रतिभागियों ने दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान दलित सृजन परिदृष्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर न सिर्फ़ गहन विमर्श किया , बल्कि दलित उत्पीड़न से जुड़े अनेक लोमहर्षक घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए व्यापक कार्ययोजना की ज़रूरतों को भी रेखांकित किया । यह आयोजन उद्घाटन और समापन सत्र के अलावा पाँच सत्रों में बँटा था । इस पूरे आयोजन में सत्तर शोधार्थियो ने अपने शोध पत्रो का वाचन किया.
                पहले सत्र का विषय था - समकालीन भारतीय साहित्य में हाशिए का स्वर । इस सत्र की अध्यक्षता जाने - माने दलित चिंतक और बौद्ध विचारक प्रो. तुलसी राम ने की । उन्होंने कहा दलित चिंतन की विरासत बौद्ध चिंतन से शुरू होती है । इस परंपरा में ईश्वर और उनके नाम पर फैले समस्त अनुष्ठानों को नकार कर समतावादी मानवीय अस्मिता और न्याय के सिद्धांत की प्रतिष्ठा की गयी । उन्होंने भारतीय साहित्य में व्यापकता से फैले दलित अस्मिता के विभिन्न स्वरों को रेखांकित किया ।  सत्र को बनारस से आये प्रो. चौथीराम यादव  ने संबोधित करते हुए कहा कि प्रतिरोध की असली विरासत दलित रचना परिदृष्य है , जिसके क्रांतिकारी स्वरों की गूँज भारत के साथ ही दुनिया के वंचितो के हक़ की लड़ाई लड़ रहा है । बनारस से ही आये निरंजन सहाय ने हिन्दी दलित लघुकथा लेखन संसार की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि यह संसार तथाकथित मुख्यधारा के लघुकथा लेखन से अलग है , जिसमें अनेक सदियों  से चले आ रहे उत्पीड़न से संघर्ष का माद्दा है । जे.एन.यु. के डॉ. रामचन्द्र ने दलित रचना संसार को समकालीन रचना परिदृष्य का ऐसा तीव्र आवेग बताया जिसकी ज़द में परिवर्तन का संकल्प है । नेपाल से आये अर्जुन वी.के. , मुंबई के प्रो. दामोदर मोरे  ने भी सत्र को संबोधित किया । संचालन दिलीप कठेरिया ने किया ।
दूसरा सत्र अस्मितावादी विमर्श में दलित स्वर पर केन्द्रित था । इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. विमल थोरात ने की । उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि स्त्री रचनाकार ही स्त्री के दुख - दर्द की असली बात कह सकती है । उन्होंने आगे कहा कि दलित स्त्रियाँ एक साथ पितृसत्तात्मकता , आर्थिक शोषण और जातीय शोषण यानी तिहरे शोषण का शिकार होती हैं । विख्यात साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा समाज के सभी समुदाय की स्त्रियों के दुख - दर्द , हताशा - आकांक्षाएँ समान हैं । इस सत्र को निर्मला पुतुल , अभय कुमार दुबे ने भी संबोधित किया । संचालन मेनका श्रीवास्तव ने किया ।

तीसरा  सत्र साहित्य में आदिवासी अस्मिता , भाषा , संस्कृति एवं क्षेत्रीयता के प्रश्न पर आधारित था । विख्यात दलित मराठी साहित्यकार लक्ष्मण गायकवाड़ ने इस बात पर हैरत ज़ाहिर कि कैसे सुनियोजित तरीके से दलित - आदिवासियों के योगदान को स्वीकार को नकारा गया । उन्होंने इस मुद्दे पर व्यापक आंदोलन चलाने की ज़रूरत को रेखांकित किया , जिससे आदिवासी हक़ों के पूरा होने की ज़मीन तैयार हो सके । सत्र को जयपुर के हरिराम मीणा , मैसूर के डॉ. शांता नाईक के अलावा अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया । सत्र का संचालन हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के डॉ. सुनील कुमार सुमन ने किया । पहले दिन की सांस्कृतिक संध्या में भारतीय दलित नाट्य अकादेमी लखनऊ के श्याम कुमार के दल ने नाटक डोम पहलवान की यादगार प्रस्तुति पेश की  ।  
              दूसरे दिन का आगाज़ चौथे सत्र से हुआ । विषय था , ‘ भारतीय साहित्य में अल्पसंख्यक अस्मिता एवं सांप्रदायिकता के प्रश्न । सत्र की अध्यक्षता हैदराबाद के प्रो. वी.कृष्णा ने की । उन्होंने कहा कि हाशिए के स्वरों की अस्मिता की प्रतिष्ठा समाज की अनिवार्य ज़रूरत है । शीबा असलम फहमी ने कहा कि सांप्रदायिक कट्टरताओं ने यह भ्रम फैलाया कि हिन्दुस्तान पर मुसलमानों ने राज़ किया , जबकि सचाई यह है कि कुछ खानदानों ने ज़रूर राज़ किया , बहुसंख्यक मुसलमान तो दारुण दुख और अशिक्षा का सामना करते रहे । बजरंग बिहारी तिवारी ने सूफी साहित्य के पक्षों का विस्तृत उल्लेख करते हुए इस बात पर हैरत ज़ाहिर की कि वहाँ जाति प्रसंगों पर चुप्पी है ।  सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. चमन लाल ने नास्तिकों को भी अल्पसंख्यक मानते हुए उनके प्रति बरती जा रही कट्टरता को नृषंश बताया । सत्र को ईश कुमार गंगानिया समेत अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया ।इस सत्र का  संचालन सुनील कुमार सुमन ने किया ।

पाँचवे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । सत्र में तीन पीढ़ियों के रचनाकारों ने शिरकत की । ओमप्रकाश वाल्मीकि , निर्मला पुतुल , दामोदर मोरे , हेमलता महीश्वर , रजतरानी मीनू , मोहन त्यागी , सुरेश चन्द्र कठेरिया , पूरन सिंह , किरण मेश्राम , अनिल सूर्या , कमलेश कुमारी रवि , अजमेर सिंह काजल , सुनील अभिमान अवचार , अमित कुमार , प्रफुल्ल मून , पूर्णिमा मौर्या , सांची जीवने समेत अनेक कवि - कवयित्रियों ने कविताओं की यादगार प्रस्तुति की । सांस्कृतिक संध्या में बुद्धिस्ट आर्ट अकादेमी, नागपूर के संजय जीवने ने दलित डॉट कॉम की पहली नाट्य प्रस्तुति की । इस यादगार प्रस्तुति में भारतीय लोकत्न्त्र की विकास यात्रा में शामिल दलित उत्पीड़न , प्रतिरोध , उदारीकरण , निजीकरण समेत अनेक पहलुओं की नाट्कीय भंगिमा का उद्घाटन किया गया ।  
              समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे सान्सद जनार्दन द्विवेदी । उन्होंने अंबेडकर को भारतीय लोकतन्त्र का मसीहा बताते हुए कहा कि उनके प्रभाव में लिखा दलित साहित्य व्यापक बदलाव का हिमायती है । सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. सुखदेव थोरात ने कहा कि महाराष्ट्र से चला आँदोलन दलित अस्मिता एवं  सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट के माध्यम से पूरे देश में समानता और न्याय के संघर्ष को आगे बढ़ायेगा । प्रो. विमल थोरात ने संस्था की गतिविधियों और भविष्य की योजनाओं की विस्तार से चर्चा की ।
-विमल थोरात
 अध्यक्ष- सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट
मोबाईल न. – 9811807522

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